Sant Ravidas Jayanti Best Wishes Quotes | Sant Ravidas Ji Ke Anmol Vachan Hindi Mein

Updated: Feb 21, 2021 11:14 PM

Sant Ravidas Jayanti Best Wishes Quotes: "मन चंगा तो कठौती में गंगा" ये कहावत तो आप लोगों ने सुनी होगी आज उन्हीं महान संत गुरु रविदास जी के बारे में बात करेंगे। हिन्दू पंचांग के अनुसार माघ महीने की पूर्णिमा तिथि को हर साल संत रविदास जी की जयंती 27 फरवरी को मनाई जाती है। इस साल 2021 में 27 फरवरी को शनिवार के दिन संत रविदास जी की 644 वीं जयंती मनाई जाएगी। यह दिन लोगों को शांति , सच्चाई और भाईचारे का संदेश देता है। भारत में अधिकतर लोग संत रविदास जी को भगवान के समान मानते और पूजते हैं। और इसे भारत में बड़े उत्साह के साथ मनाया जाता है।
इस मौके पर उनके उपासकों द्वारा सुबह नगर कीर्तन, सत्संग और लंगर आदि का आयोजन किया जाता है। वे 15वीं शताब्दी के महान संत, कवि और ईश्वर के भक्त थे, उन्होंने मीरा बाई जैसी कृष्ण भक्त और सिकंदर लोधी जैसे शासकों और करोडो लोगों का उद्धार किया।

Sadhguru Ravidas Ji ke Dohe:-

रैदास कहै जाकै हदै, रहे रैन दिन राम।
सो भगता भगवंत सम, क्रोध न व्यापै काम।।
अर्थ – रैदास जी कहते है कि जिसके हृदय मे रात दिन राम समाये रहते है, ऐसा भक्त राम के समान है, उस पर न तो क्रोध का असर होता है और न ही काम भावना उस पर हावी हो सकती है।

हरि-सा हीरा छांड कै, करै आन की आस।
ते नर जमपुर जाहिंगे, सत भाषै रविदास।।
अर्थ – हरी के समान बहुमूल्य हीरे को छोड़ कर अन्य की आशा करने वाले अवश्य ही नरक जायेगें। यानि प्रभु भक्ति को छोड़ कर इधर-उधर भटकना व्यर्थ है।

जा देखे घिन उपजै, नरक कुंड मेँ बास ।
प्रेम भगति सों ऊधरे, प्रगटत जन रैदास ।।
अर्थ – जिस रविदास को देखने से घर्णा होती थी, जिसका नरक कुंद मे वास था, ऐसे रविदास जी का प्रेम भक्ति ने कल्याण कर दिया है ओंर वह एक मनुष्य के रूप मै प्रकट हो गए है।

रविदास’ जन्म के कारनै, होत न कोउ नीच।
नर कूँ नीच करि डारि है, ओछे करम की कीच।
अर्थ – रविदास जी कहते हैं कि मात्र जन्म के कारण कोई नीच नहीं बन जाता हैं परन्तु मनुष्य को वास्तव में नीच केवल उसके कर्म बनाते हैं।

“मन चंगा तो कठौती में गंगा”
अर्थ -यदि आपका मन पवित्र है तो साक्षात् ईश्वर आपके हृदय में निवास करते है।

जाति-जाति में जाति हैं, जो केतन के पात।
रैदास मनुष ना जुड़ सके जब तक जाति न जात।।
अर्थ – जिस तरह केले के पेड़ के तने को छिला जाये तो पत्ते के नीचे पत्ता फिर पत्ते के नीचे पत्ता और अंत में पूरा पेड़ खत्म हो जाता है लेकिन कुछ नही मिलता। उसी प्रकार इंसान को भी जातियों में बाँट दिया गया है इन जातियों के विभाजन से इन्सान तो अलग अलग बंट जाता है और अंत में इन्सान भी खत्म हो जाते है लेकिन यह जाति खत्म नही होती है इसलिए रविदास जी कहते है जब तक ये जाति खत्म नही होगी तब तक इन्सान एक दूसरे से जुड़ नही सकता है यानि एक नही हो सकता है।

कह रैदास तेरी भगति दूरि है,
भाग बड़े सो पावै।
तजि अभिमान मेटि आपा पर,
पिपिलक हवै चुनि खावै।"
हिन्दी अर्थ – रविदास जी के इस दोहे का आशय यही है की ईश्वर की भक्ति बड़े भाग्य से प्राप्त होती है यदि आपमें थोडा सा भी अभिमान नही है तो निश्चित ही आपका जीवन सफल रहता है ठीक वैसे ही जैसे एक विशालकाय हाथी शक्कर के दानो को बिन नही सकता है लेकिन एक तुच्छ सी दिखने वाली चीटी भी शक्कर के इन दानो को आसानी से बिन लेती है इस प्रकार इंसानों को भी बडप्पन का भाव त्यागकर ईश्वर की भक्ति में अपना ध्यान लगाना चाहिए

"कृस्न, करीम, राम, हरि, राघव,
जब लग एक न पेखा।
वेद कतेब कुरान, पुरानन, सहज एक नहिं देखा।।"
हिन्दी अर्थ – रविदास जी कहते है की राम, कृष्ण, हरी, ईश्वर, करीम, राघव सब एक ही परमेश्वर के अलग अलग नाम है वेद, कुरान, पुराण आदि सभी ग्रंथो में एक ही ईश्वर का गुणगान किया गया है और सभी ईश्वर की भक्ति के लिए सदाचार का पाठ सिखाते है.
 

श्री रविदास जी की अमृत वाणी (Sant Ravidas Ji Ke Anmol Vachan)

🙏स्वामी एक है, और वह अनेक रुपों में सर्वव्यापक है, ‘वह’ सब प्राणियों के भीतर स्वयं प्रतिष्ठित होकर आनन्द ले रहा है ‘वह’ मेरे हाथ से भी अधिक निकट है और बड़ी सहजता से उसकी प्राप्ती हो सकती है।🙏

🙏भ्रम के नष्ट होने पर ही प्रभु प्राप्ति संभव है।🙏

🙏निराकार प्रभु को अपने आप को समर्पित करने से उसकी प्राप्ति होती है पूजा की सभी वस्तुएं संसारिक है।🙏

🙏यह पाँच तत्व रुपी मिट्टी का पुतला ( मनुष्य ) मोह-माया में फँसकर सांसारिक कार्य-कलापों में नाच रहा है। यह मोह-माया के प्रभाव में फँसकर देखता, सुनता, बोलता और दौड़ता है।🙏

🙏हरि-हरि सुमिरन करने से प्रभु के भक्तजन संसार-सागर से मुक्त हुए हैं, मुक्त हो रहे हैं और मुक्त होते रहेंगे । परमात्मा का हरि नाम हृदय को उज्जवल करने वाला है।🙏

🙏हरि सुमिरन से भवसागर पार होता है। इस लोक में भी हरि नाम जीवात्मा का एक मात्र सहारा है।🙏

🙏हे प्रभु ! तुम चन्दन के सुगन्धित वृक्ष हो और हम संसारिक जीव बेचारे एरंड के गंधहीन और गुणहीन पौधे हैं, किंतु आपकी कृपा से हमें आपके चरणों की संगति प्राप्त हुई है। आपकी सुगंध हमारे अंदर बस गई है, अब हम नीच गंधहीन पौधे से ऊँचे सुगन्ध-युक्त वृक्ष हो गए हैं।🙏

🙏किसी की पूजा इसलिए नहीं करनी चाहियें क्योंकि वो किसी पूजनीय पद पर बैठा हैं। यदि उस व्यक्ति में योग्य गुण नहीं हैं तो उसकी पूजा नहीं करनी चाहियें। इसके विपरीत यदि कोई व्यक्ति ऊँचे पद पर नहीं बैठा है परन्तु उसमे योग्य गुण हैं तो ऐसे व्यक्ति को पूजना चाहियें।🙏

🙏भगवान उस ह्रदय में निवास करते हैं जिसके मन में किसी के प्रति बैर भाव नहीं है, कोई लालच या द्वेष नहीं है।🙏

🙏कोई भी व्यक्ति छोटा या बड़ा अपने जन्म के कारण नहीं बल्कि अपने कर्म के कारण होता है। व्यक्ति के कर्म ही उसे ऊँचा या नीचा बनाते हैं।🙏

🙏हमें हमेशा कर्म करते रहना चाहियें और साथ साथ मिलने वाले फल की भी आशा नहीं छोड़नी चाहयें, क्योंकि कर्म हमारा धर्म है और फल हमारा सौभाग्य।🙏

🙏जिस प्रकार तेज़ हवा के कारण सागर मे बड़ी-बड़ी लहरें उठती हैं, और फिर सागर में ही समा जाती हैं, उनका अलग अस्तित्व नहीं होता । इसी प्रकार परमात्मा के बिना मानव का भी कोई अस्तित्व नहीं है।🙏

🙏कभी भी अपने अंदर अभिमान को जन्म न दें। इस छोटी से चींटी शक्कर के दानों को बीन सकती है परन्तु एक विशालकाय हाँथी ऐसा नहीं कर सकता।

🙏मोह-माया में फँसा जीव भटकता रहता है। इस माया को बनाने वाला ही मुक्ती दाता है।🙏

🙏भ्रम के कारण साँप और रस्सी तथा सोने के गहने और सोने में अन्तर नहीं जाना जाता, किन्तु भ्रम दूर होते ही इनका अन्तर ज्ञात हो जाता है, उसी प्रकार अज्ञानता के हटते ही मानव आत्मा, परमात्मा का मार्ग जान जाती है, तब परमात्मा और मनुष्य मे कोई भेदभाव वाली बात नहीं रहती।🙏

🙏जीव को यह भ्रम है कि यह संसार ही सत्य है किंतु जैसा वह समझ रहा है वैसा नही है, वास्तव में संसार असत्य है।🙏


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