जीवन का मर्म सिखाती है - नारी सृष्टा नव जीवन की, जीने का मर्म सिखाती है

Updated: Aug 22, 2020 09:48 PM

जीवन का मर्म सिखाती है

नारी सृष्टा नव जीवन की,जीने का मर्म सिखाती है।
हो दुर्गम कितना पंथ किंतु,नारी चल कर दिखलाती है।

उद्गम से संगम तक धारे, नारी ने नित-नित रूप नए।
किये दूर अशिक्षा के घेरे, हर युग को नव आकार दिए।
ममता की मूरत निश्छल मन, चूल्हा चौका करती प्रतिदिन।
है सरल,सहज लेकिन प्रवीण, घर आँगन तृप्त करे निशिदिन।
छल बल विद्या जाने ना, बस स्नेह गागर छलकाती है।
नारी सृष्टा नव जीवन की, जीने का मर्म सिखाती है।।

गृह कार्य सभी पूरे करती, कब लोक लाज का दाह  करे।
है उम्र साठ के पार किंतु, दायित्व सभी निर्वाह करे।
बस अवसर की प्रतीक्षा थी, चलना सीखा नव पीढ़ी सँग।
लिखना-पढ़ना भी जान गई, मन मे भरकर उत्साह उमंग।
उद्योग चलाती घर से ही, शिक्षा का अलख जगाती है।

नारी सृष्टा नव जीवन की, जीने का मर्म सिखाती है ।।

रीना गोयल
सरस्वती-नगर, हरियाणा।
(युग जागरण लखनऊ द्वारा प्रकाशित)


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