Lockdown Special Inspirational Story – नर्तकी के एक दोहे ने ऐसा बदला सबका जीवन

Updated: Aug 2, 2020 12:19 AM

एक राजा को राज भोगते-भोगते काफी समय हो गया था। बाल भी सफ़ेद हो चुके थे। एक दिन उसने अपने दरबार में उत्सव का आयोजन करवाया और अपने गुरुदेव एवं मित्र देश के राजाओं को भी सादर आमन्त्रित किया। उत्सव को रोचक बनाने के लिए राज्य की सुप्रसिद्ध नर्तकी को भी नृत्य प्रदर्शन हेतु बुलाया गया।

राजा ने कुछ स्वर्ण मुद्रायें अपने गुरु जी को भी दीं, ताकि नर्तकी के अच्छे गीत व नृत्य पर वे उसे पुरस्कृत कर सकें। सारी रात नृत्य चलता रहा। ब्रह्म मुहूर्त का समय आया। नर्तकी ने देखा कि मेरा तबले वाला ऊँघ रहा है और तबले वाले को सावधान करना ज़रूरी है, वरना राजा का क्या भरोसा कही दंड का आदेश न दे दे, तो उसको जगाने के लिए नर्तकी ने एक दोहा पढ़ा -

"बहु बीती, थोड़ी रही, पल पल गयी बिताई।
एक पल के कारने, ना कलंक लग जाए।"

अब इस दोहे का अलग-अलग व्यक्तियों ने अपने अनुरुप अर्थ निकाला। तबले वाला सतर्क होकर बजाने लगा।

जब यह दोहा गुरु जी ने सुना और गुरु जी ने सारी मोहरें उस नर्तकी को अर्पण कर दीं ।

दोहा सुनते ही राजा की लड़की ने भी अपना नौलखा हार नर्तकी को भेंट कर दिया।

दोहा सुनते ही राजा के पुत्र युवराज ने भी अपना मुकुट उतारकर नर्तकी को समर्पित कर दिया।

राजा बहुत ही अचिम्भित हो गया। सोचने लगा रात भर से नृत्य चल रहा था पर ऐसा अचानक एक दोहे से क्या हुआ कि सबने अपनी-अपनी मूल्यवान वस्तु ख़ुश हो कर नर्तिकी को समर्पित कर दी।

जिज्ञासावश राजा सिंहासन से उठा और नर्तकी को बोला कि "एक दोहे द्वारा एक नीच नर्तिका होकर तुमने सबको लूट लिया।"

राजा ने सबसे इस विषय पर अपने-अपने विचार जान्ने की इच्छा जाहिर की तो राजा के गुरु गुरु के नेत्रों में आँसू आ गए और गुरु जी कहने लगे - "राजन इसको नीच नर्तिकी मत कहें, ये अब मेरी गुरु बन गयी है क्योंकि इसने एक दोहे से मेरी आँखें खोल दी हैं। इसने अपने दोहे से मुझे समझाया कि मैं सारी उम्र जंगलों में भक्ति करता रहा और आखिरी समय में नर्तकी का मुज़रा देखकर अपनी साधना नष्ट करने यहाँ चला आया हूँ, भाई ! मैं तो चला।" यह कहकर गुरु जी ने अपना कमण्डल उठाकर जंगल की ओर चल पड़े।

इसके बाद राजा की लड़की ने कहा - "पिता जी! मैं जवान हो गयी हूँ। आप आँखें बन्द किए बैठे हैं, मेरी शादी नहीं कर रहे थे और आज रात मैंने आपके महावत के साथ भागकर अपना जीवन बर्बाद कर लेती। लेकिन इस नर्तकी के दोहे ने मुझे सुमति दी है कि जल्दबाजी मत कर कभी तो तेरी शादी होगी ही। क्यों अपने पिता को कलंकित करने पर तुली है ?"

युवराज ने कहा - "पिता जी ! आप वृद्ध हो चले हैं, फिर भी मुझे राज करने का अवसर नहीं दे रहे हैं। मैंने आज रात ही आपके सिपाहियों से मिलकर आपका कत्ल करवा देना चाहता था। लेकिन इस नर्तकी के दोहे ने समझाया कि पगले ! आज नहीं तो कल आखिर राज तो तुम्हें ही मिलना है, क्यों अपने पिता के खून का कलंक अपने सिर पर लेना चाहता हैं। धैर्य रख।"

जब ये सब बातें राजा ने सुनी तो राजा को भी आत्म ज्ञान प्राप्त हो गया। राजा के मन में वैराग्य आ गया। राजा ने तुरन्त फैंसला लिया - "क्यों न मैं अभी युवराज का राजतिलक कर दूँ।" फिर क्या था, उसी समय राजा ने युवराज का राजतिलक किया और अपनी पुत्री को कहा - "पुत्री ! दरबार में एक से एक राजकुमार आये हुए हैं। तुम अपनी इच्छा से किसी भी राजकुमार के गले में वरमाला डालकर अपने पति रुप में चुन सकती हो।" राजकुमारी ने ऐसा ही किया और राजा सब त्याग कर जंगल में गुरु की शरण में चला गया।

यह सब देखकर नर्तकी ने सोचा - "मेरे एक दोहे से इतने लोग सुधर गए, लेकिन मैं क्यूँ नहीं सुधर पायी?" उसी समय नर्तकी में भी वैराग्य आ गया। उसने उसी समय निर्णय लिया कि आज से मैं अपना बुरा नृत्य बन्द करती हूँ और कहा कि "हे प्रभु! मेरे पापों से मुझे क्षमा करना। बस, आज से मैं सिर्फ तेरा नाम सुमिरन करुँगी।"

और इस तरह एक-एक करके सभी को सद्गुण प्राप्त हो गया।

Lockdown Special Inspirational Story-

ठीक ये दोहा आज हम सब पर इस Lockdown के समय पर लागू होता है।

"बहु बीती, थोड़ी रही, पल पल गयी बिताई।
एक पल के कारने, ना कलंक लग जाए।"

आज हम इस दोहे को यदि हम कोरोना को लेकर अपनी समीक्षा करके देखे तो हमने पिछले 22 मार्च से जो संयम दिखाया है, परेशानियां झेली ऐसा न हो हमारी कि अंतिम क्षण में एक छोटी सी भूल, हमारी लापरवाही, हमारे साथ पूरे समाज को न ले बैठे।
आओ हम सब मिलकर कोरोना से संघर्ष करें।

घर पर रहें, सुरक्षित रहें और सावधानियों का विशेष ध्यान रखें।


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