Biography of Sant Ravidas in Hindi | मन चंगा तो कठौती में गंगा (Conclusion by Sant Ravidas)

Updated: Feb 22, 2021 12:10 AM

संत रविदास जी की जीवनी (Biography of Sant Ravidas in Hindi) :-

संत रविदास जी की जयंती कब और क्यों मनाते है?, संत शिरोमणि रविदास जी के गुरू कौन थे?

संत शिरोमणि रविदास जी का जन्म उत्तर प्रदेश में वाराणसी के पास स्थित सीर गोवर्धन गाँव में माघ की पूर्णिमा को संवत 1433 में हुआ। हालांकि उनके जन्म को लेकर सभी लोगों की अपनी अलग राय हैं कुछ लोगों के अनुसार उनका जन्म 1376-77 के दौरान हुआ तो वही कुछ कागजों में उल्लेख है की रविदास जी ने अपना जीवन 1450 से 1520 के बीच पृथ्वी पर बिताया। इनके जन्म स्थान को 'श्री गुरु रविदास जन्म अस्थान' के नाम से जाना जाता है। संत शिरोमणि रविदास जी को 'रैदास' नाम से भी जाना जाता है। संत शिरोमणि रविदास एक महान दार्शनिक, कवि, महान संत, भगवान के उपासक और भारत के महान समाज सुधारकों में से एक थे।

संत रविदास जी के पिता का नाम 'संतोख दास' (रग्घु) था। उनकी माता जी का नाम 'कर्माबाई' (कलसा) था। संत रविदास जी के पिता चर्मकार कुल से होने के कारण वे चमड़े के जूते बनाने और मरम्मत करने का काम किया करते थे।  रविदास जी का विवाह 'लोना' नामक कन्या से हुआ। तथा इनकी दो संताने थी, पुत्री का नाम 'रविदासिनी' था और पुत्र का नाम 'विजय दास' था। सिक्खों के पवित्र धर्म ग्रंथ 'गुरु ग्रंथ साहिब' में रविदास जी के करीब 40 पद सम्मिलित किए गए हैं।

संत रविदास जी के गुरु का नाम पंडित श्री शारदानंद था। जिनसे उन्होंने बचपन से ही शिक्षा लेना आरंभ कर दिया था। परंतु बाद में ऊंच-नीच के कारण रविदास जी को उनकी पाठशाला में पढ़ने नहीं दिया गया, परंतु पंडित शारदानंद जी ने रविदास जी को व्यक्तिगत तौर पर पढ़ाना आरंभ किया। रविदास जी शुरू से ही काफी होनहार और प्रतिभाशाली थे। उनके गुरु ने शुरू से ही उनमें एक अच्छा अध्यात्मिक गुरु और समाज सुधारक बनने की झलक देख ली थी।

व्यवसायिक और सामाजिक जीवन:-

संत रविदास जी अपने पिता के जूते बनाने के व्यवसाय में हमेशा हाथ बटाया करते थे। परंतु जब वह साधु-संतों और फकीरों को नंगे पाँव देखते थे तो अक्सर उन्हें मुफ्त में जूते चप्पल दे दिया करते थे। जिससे नाराज होकर उनके पिता ने उन्हें घर से निकाल दिया। घर से निकाले जाने पर उन्होंने एक कुटिया बनाई और जूते चप्पल की मरम्मत का काम शुरू किया। इससे होने वाली आमदनी से अपना गुजर-बसर करने लगे और साधु संतों की संगत में अपना जीवन व्यतीत करने लगे। इनके अच्छे व्यवहार और इनके अंदर समाए ज्ञान के कारण लोग इनके आसपास रहने लगे। संत रविदास जी को छोटी जाति से संबंध रखने के कारण उनके साथ उस समय काफी भेदभाव किया जाता था। परंतु कुछ लोग उन्हें भगवान द्वारा भेजे गए धर्म रक्षक के रूप में मानते थे ऐसे में उन्होंने इन सभी भेदभावों का धैर्य के साथ मुकाबला किया। और समझाते थे कि इंसान जाति, धर्म या भगवान पर विश्वास के आधार पर नहीं जाना जाता। इंसान केवल अपने कर्मों से ही दुनिया में पहचाना जाता है।

रविदास जी की मृत्यु:-

रविदास जी कीभगवान के प्रति उनके प्रेम सद्भावना, मानवता और सच्चाई से जलने वाले कुछ ब्राह्मणों ने उनकी मृत्यु का षड्यंत्र रचा। रविदास जी के विरोधियों द्वारा एक सभा का आयोजन किया गया और उस सभा में रविदास जी को भी बुलाया गया। रविदास जी इन ब्राह्मणों की चाल से अच्छी तरह वाकिफ थे। जिससे वह तो बच जाते हैं लेकिन गलती से उनके मित्र भला नाथ को मार दिया जाता है।  गुरुजी के उपासको और अनुयायियों की माने तो रविदास जी ने अपने 120-126 वर्ष के शरीर को 1540 AD में वाराणसी में ही प्राकृतिक रूप से त्याग दिया। जहां उन्होंने अपनी अंतिम सांस ली।

रविदास जी की चमत्कारिक कथा (Miracle) -

रविदास जी और उनके गुरु शारदा नंद जी के बेटे में काफी अच्छी मित्रता थी एक बार की बात है जब दोनों लुका छुपी का खेल खेल रहे थे तो खेलते-खेलते रात हो गई। और दोनों ने अगले दिन पुनः इस खेल को जारी रखने का फैसला किया और सोने चले गए। जब अगले दिन रविदास जी अपने मित्र के साथ खेलने पहुंचे तो पता चला कि उनके दोस्त की तो मृत्यु हो चुकी है। यह सुनकर रविदास जी अचंभे रह गए परंतु रविदास जी में बचपन से ही अलौकिक शक्तियों का वास था और जब वह यह बात सुनकर अपने मित्र के पास पहुंचे और उनसे कहा कि मित्र उठो यह समय सोने का नहीं है चलो मेरे साथ खेलो। बस इतना सुनते ही उनका मरा हुआ दोस्त उठ खड़ा हुआ और यह सब देख वहां खड़े सभी लोग हक्के बक्के रह गए।

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मन चंगा तो कठौती में गंगा (Story Behind Man Changa to Kathauti Me Ganga):-

अर्थ- यदि आपका मन पवित्र है तो साक्षात् ईश्वर आपके हृदय में निवास करते है।

एक बार की बात है जब संत रविदास जी के एक पड़ोसी मित्र ने उनसे गंगा स्नान पर चलने को कहा, परंतु उनके पास कार्य अधिकता होने के कारण समय ना होने पर उन्होंने अपने मित्र को एक सुपारी देते हुए कहा कि यह सुपारी आप मेरी तरफ से गंगा मैया को अर्पित कर दें। जब वह पड़ोसी मित्र गंगा स्नान के दौरान संत रविदास जी के नाम पर माँ गंगा को वह सुपारी अर्पित करता है तो उसे वहाँ एक कंगन मिलता है। कँगन देखकर उसके मन में लालच आ जाता है वह कँगन उठाता है और राजा को देकर उसके बदले बहुत सारा इनाम लेता है। राजा उस कँगन को जब रानी को भेट में देते हैं तो रानी को वह कँगन बहुत पसंद आता है और रानी, राजा से इसके दूसरे जोड़े की मांग करती है, जिस पर राजा उस व्यक्ति को दुबारा बुलवाता है और दूसरे कँगन की माँग करता है।

दूसरा कँगन न होने पर  पड़ोसी मित्र परेशान हो जाता है। परेशान होकर मदद के लिए अपने मित्र रविदास जी से मिलता है और सभी सच्चाई बताते हुए अपने लालच करने पर शर्मिंदा होकर उनसे माफी भी मांगता है। अपने पड़ोसी मित्र को परेशान देख रविदास जी उसे माफ कर देते हैं और पूरी श्रद्धा एवं भक्ति से माता गंगा का ध्यान करते हुए अपनी कठौती में हाथ डालकर दूसरा कंगन भी निकाल देते हैं। यह देख उनका पड़ोसी मित्र की खुशी का ठिकाना नहीं रहता और वह रविदास जी से इस चमत्कार के पीछे का राज पूछता है तो रविदास जी कहते हैं कि 'मन चंगा तो कठौती में गंगा'।


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