बेटी छोड़ चली घर द्वार बाबुल का

Updated: Aug 22, 2020 09:38 PM

बेटी छोड़ चली घर द्वार बाबुल का - सार  छन्द

मिल बाबुल से बिटिया रोये, छोड़ चली घर द्वारा।
सपनों से भी जो सुंदर था, प्राणों से भी प्यारा।।

जब मैं छोटी सी बच्ची थी, जल्दी तुम घर आते थे।
गुड़िया, गुड्डा, और खिलौने, कितने सारे लाते थे।
लेकिन सबसे अच्छा लगता, मुझको साथ तुम्हारा।
साथ तुम्ही तो होते मैंने, जब-जब तुम्हे पुकारा। 

सपनों से भी जो सुंदर था, प्राणों से भी प्यारा।।

इक मेरी मुस्कान के लिए, कितने लाड़ लड़ाते।
घोड़ा जब कहती बन जाते, चाहे थक भी  जाते।
अपने पास नही कुछ रक्खा, सब था मुझ पर वारा।
ऐसा प्यार कहाँ पाऊँगी, फिर से कहो दुबारा।

सपनों से भी जो सुंदर था, प्राणों से भी प्यारा।।

छाँव नेह की पायी तुमसे, माँ भी याद न आती।
इक दिन जाना है सब तजकर, सोच-सोच घबराती।
लालन पालन में मेरे ही, जीवन  किया गुज़ारा।
बनी पराया धन है बेटी, क्यों माने जग सारा।

सपनों से भी जो सुंदर था, प्राणों से भी प्यारा।।

करी विदाई बाबुल तुमने, कैसी रीत निभाई।
रस्मों और रिवाज़ों खातिर, बेटी करी पराई।
कैसे मुझ बिन जी पाओगे, इक पल नहीं विचारा।
कौन रखेगा ध्यान तुम्हारा, होगा कौन सहारा। 

सपनों से भी जो सुंदर था, प्राणों से भी प्यारा।।

खूब दिए आशीष पिता ने, अंक लिया बिटिया को।
बोले गुड्डे के सँग बांधा, प्यारी इस गुड़िया को।
अब ससुराल तुम्हारा घर है, सुखी रहे संसारा।
तन- मन-धन से साथ निभाओ, होगा नाम हमारा।

सपनों से भी जो सुंदर था, प्राणों से भी प्यारा।।

याद अगर मैं  बाबुल आऊँ, तुम्हे कसम मत रोना।
सजल नयन कर अश्रु धार से, दामन को मत धोना।
बहुत कठिन है बिसरा देना, ये घर ये चौबारा।
आँचल में मैं बाँध रखूंगी, प्यार तुम्हारा सारा।

सपनों से भी जो सुंदर था, प्राणों से भी प्यारा।।

-रीना गोयल, हरियाणा
(युग जागरण लखनऊ द्वारा प्रकाशित)


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